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शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

स्मृतिशेष मंगलेश डबराल: ‘इसी रात में अपना घर है’


By From NDTV

भाषा या कविता के इस व्यर्थता-बोध के बावजूद यह एहसास जाता नहीं कि अंततः रास्ता कोई और नहीं है. मंगलेश डबराल कविता न लिखते तो क्या करते? विकट और विराट ईश्वरों और दरिंदों के मुक़ाबले वे अपनी मनुष्यता का संधान न करते तो क्या करते. अन्याय को पहचानने का सयानापन कई जगह से मिल सकता है, लेकिन अन्याय से आंख मिलाने का साहस और अन्याय न करने का मनुष्योचित विवेक अगर सबसे ज़्यादा कहीं से मिल सकता है तो वह कविता है.
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